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परंतु शायरी | शाही शायरी

परंतु

18 शेर

दो ही दिन में ये सनम होश-रुबा होते हैं
कल के तर्शे हुए बुत आज ख़ुदा होते हैं

लाला माधव राम जौहर




ठहरी जो वस्ल की तो हुई सुब्ह शाम से
बुत मेहरबाँ हुए तो ख़ुदा मेहरबाँ न था

लाला माधव राम जौहर




हो गए नाम-ए-बुताँ सुनते ही 'मोमिन' बे-क़रार
हम न कहते थे कि हज़रत पारसा कहने को हैं

मोमिन ख़ाँ मोमिन




लाए उस बुत को इल्तिजा कर के
कुफ़्र टूटा ख़ुदा ख़ुदा कर के

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी