दो ही दिन में ये सनम होश-रुबा होते हैं
कल के तर्शे हुए बुत आज ख़ुदा होते हैं
लाला माधव राम जौहर
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ठहरी जो वस्ल की तो हुई सुब्ह शाम से
बुत मेहरबाँ हुए तो ख़ुदा मेहरबाँ न था
लाला माधव राम जौहर
हो गए नाम-ए-बुताँ सुनते ही 'मोमिन' बे-क़रार
हम न कहते थे कि हज़रत पारसा कहने को हैं
मोमिन ख़ाँ मोमिन
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लाए उस बुत को इल्तिजा कर के
कुफ़्र टूटा ख़ुदा ख़ुदा कर के
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी