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सितारे चाहते हैं माहताब माँगते हैं | शाही शायरी
sitare chahte hain mahtab mangte hain

ग़ज़ल

सितारे चाहते हैं माहताब माँगते हैं

अब्बास रिज़वी

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सितारे चाहते हैं माहताब माँगते हैं
मिरे दरीचे नई आब-ओ-ताब माँगते हैं

वो ख़ुश-ख़िराम जब इस राह से गुज़रता है
तो संग-ओ-ख़िश्त भी इज़्न-ए-ख़िताब माँगते हैं

कोई हवा से ये कह दे ज़रा ठहर जाए
कि रक़्स करने की मोहलत हुबाब माँगते हैं

अजीब तुर्फ़ा-तमाशा है मेरे अहद के लोग
सवाल करने से पहले जवाब माँगते हैं

तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैं
मगर ये लोग इन आँखों के ख़्वाब माँगते हैं

ये एहतिसाब अजब है कि मोहतसिब ही नहीं
रिकाब थामने वाले हिसाब माँगते हैं

सुतून-ओ-बाम की दीवार-ओ-दर की शर्त नहीं
बस एक घर तिरे ख़ाना-ख़राब माँगते हैं