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वहीद अख़्तर शायरी | शाही शायरी

वहीद अख़्तर शेर

23 शेर

बुत बनाने पूजने फिर तोड़ने के वास्ते
ख़ुद-परस्ती को नया हर रोज़ पत्थर चाहिए

वहीद अख़्तर




बिछड़े हुए ख़्वाब आ के पकड़ लेते हैं दामन
हर रास्ता परछाइयों ने रोक लिया है

वहीद अख़्तर




बे-बरसे गुज़र जाते हैं उमडे हुए बादल
जैसे उन्हें मेरा ही पता याद नहीं है

वहीद अख़्तर




बाम ओ दर ओ दीवार को ही घर नहीं कहते
तुम घर में नहीं हो तो मकाँ है भी नहीं भी

वहीद अख़्तर




अब्र आँखों से उठे हैं तिरा दामन मिल जाए
हुक्म हो तेरा तो बरसात मुकम्मल हो जाए

वहीद अख़्तर