बदन में आग है रोग़न मिरे ख़याल में है
जुदा ही रह अभी ख़तरा बहुत विसाल में है
विपुल कुमार
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बचा के आँख बिछड़ जाएँ उस से चुपके से
अभी तो अपनी तरफ़ ध्यान भी ज़ियादा नहीं
विपुल कुमार
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