उन का दरवाज़ा था मुझ से भी सिवा मुश्ताक़-ए-दीद
मैं ने बाहर खोलना चाहा तो वो अंदर खुला
सय्यद ज़मीर जाफ़री
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उन के फाटक में यूँ खड़े हैं हम
जैसे हाकी के गोलकीपर हैं
सय्यद ज़मीर जाफ़री
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