तोड़े बग़ैर संग तराशे न जाएँगे
वो दिल ही क्या जो टूट के पत्थर न हो सके
सिरज़ अालम ज़ख़मी
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वो इतनी शिद्दतों से सोचता है
कि जैसे मैं भी कोई मसअला हूँ
सिरज़ अालम ज़ख़मी
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