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शाज़ तमकनत शायरी | शाही शायरी

शाज़ तमकनत शेर

11 शेर

उस का होना भी भरी बज़्म में है वज्ह-ए-सुकूँ
कुछ न बोले भी तो वो मेरा तरफ़-दार लगे

शाज़ तमकनत




ज़िंदगी हम से तिरे नाज़ उठाए न गए
साँस लेने की फ़क़त रस्म अदा करते थे

शाज़ तमकनत