सब यहाँ 'जौन' के दिवाने हैं
'हक़' कहो कौन तुम को चाहेगा
सय्यदा अरशिया हक़
तो क्या हुआ जो जन्मी थी परदेस में कभी
बेटी है 'अर्शिया' भी तो हिन्दोस्तान की
सय्यदा अरशिया हक़
तुम भी आख़िर हो मर्द क्या जानो
एक औरत का दर्द क्या जानो
सय्यदा अरशिया हक़
तुम्हारा रोज़ जो मैं सर्फ़ करती रहती हूँ
तुम्हें गुमान न हो तुम मिरी मोहब्बत हो
सय्यदा अरशिया हक़
तुम्हारे ख़त जला कर के तुम्हें यकसर भुला दूँगी
तुम्हारे जुर्म की तुम को मैं इस दर्जा सज़ा दूँगी
सय्यदा अरशिया हक़
तुम्हें लगता है जो वैसी नहीं हूँ
मैं अच्छी हूँ मगर इतनी नहीं हूँ
सय्यदा अरशिया हक़
यही दुआ है वो मेरी दुआ नहीं सुनता
ख़ुदा जो होता अगर क्या ख़ुदा नहीं सुनता
सय्यदा अरशिया हक़