शिकस्ता-पाई से होती हैं बस्तियाँ आबाद
जो अब क़बीला हुआ पहले क़ाफ़िला होगा
सग़ीर मलाल
तअज्जुब उन को है क्यूँ मेरी ख़ुद-कलामी पर
हर आदमी का कोई राज़-दाँ ज़रूरी है
सग़ीर मलाल
तमाम वहम ओ गुमाँ है तो हम भी धोका हैं
इसी ख़याल से दुनिया को मैं ने प्यार किया
सग़ीर मलाल
तेरे बारे में अगर ख़ामोश हूँ मैं आज तक
फिर तिरे हक़ में किसी का फ़ैसला कैसे हुआ
सग़ीर मलाल
उन से बचना कि बिछाते हैं पनाहें पहले
फिर यही लोग कहीं का नहीं रहने देते
सग़ीर मलाल
ज़माने भर से उलझते हैं जिस की जानिब से
अकेले-पन में उसे हम भी क्या नहीं कहते
सग़ीर मलाल
ज़रूरत उस की हमें है मगर ये ध्यान रहे
कहाँ वो ग़ैर-ज़रूरी कहाँ ज़रूरी है
सग़ीर मलाल