और कुछ यूँ हुआ कि बच्चों ने
छीना-झपटी में तोड़ डाला मुझे
रसा चुग़ताई
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अल्फ़ाज़ में बंद हैं मआनी
उनवान-ए-किताब-ए-दिल खुला है
रसा चुग़ताई
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अक्स-ए-ज़ुल्फ़-ए-रवाँ नहीं जाता
दिल से ग़म का धुआँ नहीं जाता
रसा चुग़ताई
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आरिज़ों को तिरे कँवल कहना
इतना आसाँ नहीं ग़ज़ल कहना
रसा चुग़ताई
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आज मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू है हयात
अब कोई और बात कल कहना
रसा चुग़ताई
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