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रसा चुग़ताई शायरी | शाही शायरी

रसा चुग़ताई शेर

32 शेर

और कुछ यूँ हुआ कि बच्चों ने
छीना-झपटी में तोड़ डाला मुझे

रसा चुग़ताई




अल्फ़ाज़ में बंद हैं मआनी
उनवान-ए-किताब-ए-दिल खुला है

रसा चुग़ताई




अक्स-ए-ज़ुल्फ़-ए-रवाँ नहीं जाता
दिल से ग़म का धुआँ नहीं जाता

रसा चुग़ताई




आरिज़ों को तिरे कँवल कहना
इतना आसाँ नहीं ग़ज़ल कहना

रसा चुग़ताई




आज मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू है हयात
अब कोई और बात कल कहना

रसा चुग़ताई