मसअले हल करते करते आदमी का ज़ेहन भी
बे-तरह उलझा हुआ इक मसअला हो जाएगा
राणा गन्नौरी
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रहे ख़याल हिक़ारत से देखने वालो
हक़ीर लोग बड़े आदमी निकलते हैं
राणा गन्नौरी
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रखना हमेशा याद ये मेरा कहा हुआ
आता नहीं है लूट के पानी बहा हुआ
राणा गन्नौरी
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रखो तुम बंद बे-शक अपनी घड़ियाँ
समय तो रात दिन चलता रहेगा
राणा गन्नौरी
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तुम्हारी राह में आँखें बिछाए बैठा हूँ
तुम्हारे आने की हालाँकि कोई आस नहीं
राणा गन्नौरी
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तुम्हें ऐ काश कोई राज़ ये समझा गया होता
अगर सुनते तो कहने का सलीक़ा आ गया होता
राणा गन्नौरी
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ज़िंदगी का भी किया भरोसा है
ज़िंदगी की क़सम भी क्या खाऊँ
राणा गन्नौरी
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