आप ने अच्छा किया ततहीर-ए-ख़्वाहिश ही न की
वर्ना ज़मज़म चश्मा-ए-नापाक होता ग़ालिबन
राही फ़िदाई
बराए-नाम ही सही ब-एहतियात कीजिए
दरून-ए-किज़्ब-ओ-इफ़्तिरा सदाक़तें ख़लत-मलत
राही फ़िदाई
हादसों के ख़ौफ़ से एहसास की हद में न था
वर्ना नफ़्स-ए-मुतमइन सफ़्फ़ाक होता ग़ालिबन
राही फ़िदाई
हर एक शाख़ थी लर्ज़ां फ़ज़ा में चीख़-ओ-पुकार
हवा के हाथ में इक आब-दार ख़ंजर था
राही फ़िदाई
हवस-गिरफ़्ता हवाओ निगाहें नीची रखो
शजर खड़े हैं सड़क के क़रीन बे-पर्दा
राही फ़िदाई
किसी को साया किसी को गुल-ओ-समर देगा
हरा-भरा है दरख़्त-ए-रिवाज रहने दो
राही फ़िदाई
लज़्ज़त का ज़हर वक़्त-ए-सहर छोड़ कर कोई
शब के तमाम रिश्ते फ़रामोश कर गया
राही फ़िदाई
सब्ज़ा-ज़ारों की शराफ़त से न खेलो क़तअन
तुम हवा हो तो ख़लाओं से लिपट कर देखो
राही फ़िदाई
शराफ़तों के रंग में शरारतें ख़लत-मलत
सर-ए-मज़ाक़ हो गईं हिमाक़तें ख़लत-मलत
राही फ़िदाई