न हो रिहाई क़फ़स से अगर नहीं होती
निगाह-ए-शौक़ तो बे-बाल-ओ-पर नहीं होती
क़मर जलालवी
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न हो रिहाई क़फ़स से अगर नहीं होती
निगाह-ए-शौक़ तो बे-बाल-ओ-पर नहीं होती
क़मर जलालवी