किया अज़ल से है साने' ने बुत-परस्त मुझे
कभू बुतों से फिरूँ मैं ये तो ख़ुदा न करे
नैन सुख
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लोगों के फोड़ता फिरे शीशे
मोहतसिब को तो मस्ख़रा कहिए
नैन सुख
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पूछे कोई किसी को सो इम्कान ही नहीं
ना-पुर्सी का ये दौर अनोखा भला फिरा
नैन सुख
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साने' मिरा वो है कि हो कैसी ही चोब-ए-ख़ुश्क
सौ सौ दफ़ा वो चाहे तो उस को हरी करे
नैन सुख
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वो जो इक तोला कई माशा थी यारी तुम से
रत्ती भर भी न रहा इस में कुछ आसार कहीं
नैन सुख
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ये सारा क़ज़िया तो हम से है इस से तुम को क्या
तुम अपने एक तरफ़ हो रहो हुआ सो हवा
नैन सुख
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