वो निगाह-ए-शर्मगीं हो या किसी का इंकिसार
झुक के जो मुझ से मिला वो एक ख़ंजर हो गया
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
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वो शम्अ नहीं हैं कि हों इक रात के मेहमाँ
जलते हैं तो बुझते नहीं हम वक़्त-ए-सहर भी
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
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या दिल है मिरा या तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है
गुल है कि इक आईना सर-ए-राह पड़ा है
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
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