तू मुझे ज़हर पिलाती है ये तेरा शेवा
ऐ मिरी रात तुझे ख़ून पिलाया मैं ने
मुईद रशीदी
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उस बार उजालों ने मुझे घेर लिया था
इस बार मिरी रात मिरे साथ चली है
मुईद रशीदी
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वो चाहते हैं कि हर बात मान ली जाए
और एक मैं हूँ कि हर बात काट देता हूँ
मुईद रशीदी
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ये हिजरतों के तमाशे, ये क़र्ज़ रिश्तों के
मैं ख़ुद को जोड़ते रहने में टूट जाता हूँ
मुईद रशीदी
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ज़िंदगी हम तिरे कूचे में चले आए तो हैं
तेरे कूचे की हवा हम से ख़फ़ा लगती है
मुईद रशीदी
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