तल्ख़ी तुम्हारे वाज़ में है वाइज़ो मगर
देखो तो किस मज़े की है तल्ख़ी शराब में
मिर्ज़ा मायल देहलवी
तौबा के टूटते का है 'माइल' मलाल क्यूँ
ऐसी तो होती रहती है अक्सर शबाब में
मिर्ज़ा मायल देहलवी
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तुम्हें समझाएँ तो क्या हम कि शैख़-ए-वक़्त हो माइल
तुम अपने आप को देखो और इक तिफ़्ल-ए-बरहमन को
मिर्ज़ा मायल देहलवी
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