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मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम शायरी | शाही शायरी

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम शेर

34 शेर

जब मैं कहता हूँ कि नादिम हो कुछ अपने ज़ुल्म पर
सर झुका कर कहते हैं शर्म-ओ-हया से क्या कहें

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम




जो किया मैं ने वो सब कुछ था बुरा
आप ने जो कुछ किया अच्छा किया

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम




ख़िज़ाँ रुख़्सत हुई फिर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
गरेबाँ ख़ुद-बख़ुद होने लगा है धज्जियाँ मेरा

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम




ख़ुदा का घर भी है दिल में बुतों की चाह भी है
सनम-कदा भी है दिल अपना ख़ानक़ाह भी है

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम




ख़ुद-ब-ख़ुद यक-ब-यक चले आए
मैं तो आँखें तलक बिछा न सका

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम




कुछ कहानी नहीं मिरा क़िस्सा
तुम सुनो और कहा करे कोई

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम




कुछ नहीं मालूम होता दिल की उलझन का सबब
किस को देखा था इलाही बाल सुलझाते हुए

मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम