क्या सबब बतलाएँ हँसते हँसते बाहम रुक गए
ख़ुद-बख़ुद कुछ वो खींचे ईधर उधर हम रुक गए
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
न कर ऐ 'लुत्फ' नाहक़ रहरवान-ए-दैर से हुज्जत
यही रस्ता तो खा कर फेर है का'बे को जा निकला
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
नहीं वो हम कि कहने से तिरे हर बुत के बंदे हों
करे पैदा भी गर नासेह तू उस ग़ारत-गर-ए-दीं सा
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
पाकी-ए-दामान-ए-गुल की खा न ऐ बुलबुल क़सम
रात भर सरशार-ए-कैफ़िय्यत मैं शबनम से रहा
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
याद ने उन तंग कूचों की फ़ज़ा सहरा की देख
हर क़दम पर जान मारी है दिल-ए-नाकाम की
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
यही तो कुफ़्र है यारान-ए-बे-ख़ुदी के हुज़ूर
जो कुफ़्र-ओ-दीं का मिरे यार इम्तियाज़ रहा
मिर्ज़ा अली लुत्फ़