क्यूँ मेरी बूद-ओ-बाश की पुर्सिश है हर घड़ी
तुम तो कहो कि रहते हो दो दो पहर कहाँ
मीर मेहदी मजरूह
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क्यूँ पास मिरे आ कर यूँ बैठे हो मुँह फेरे
क्या लब तिरे मिस्री हैं मैं जिन को चबा जाता
मीर मेहदी मजरूह
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