सब मुमकिन था प्यार मोहब्बत हँसते चेहरे ख़्वाब-नगर
लेकिन एक अना ने कितने भोले दिन बर्बाद किए
मरग़ूब अली
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
वस्ल का गुल न सही हिज्र का काँटा ही सही
कुछ न कुछ तो मिरी वहशत का सिला दे मुझ को
मरग़ूब अली