तुझ ऐसी नर्म गर्म कई लड़कियों के साथ
मैं ने शब-ए-फ़िराक़ डुबो दी शराब में
मंसूर आफ़ाक़
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वो तिरा ऊँची हवेली के क़फ़स में रहना
याद आए तो परिंदों को रिहा करता हूँ
मंसूर आफ़ाक़
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