सब कुछ है और कुछ नहीं ऐ दाद-ख़्वाह-ए-इश्क़
वो देख कर न देखना नीची निगाह से
मैकश अकबराबादी
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थी जुनूँ-आमेज़ अपनी गुफ़्तुगू
बात मतलब की भी लेकिन कह गए
मैकश अकबराबादी
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तिरी ज़ुल्फ़ों को क्या सुलझाऊँ ऐ दोस्त
मिरी राहों में पेच-ओ-ख़म बहुत हैं
मैकश अकबराबादी
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ये मस्लक अपना अपना है ये फ़ितरत अपनी अपनी है
जलाओ आशियाँ तुम हम करेंगे आशियाँ पैदा
मैकश अकबराबादी
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ज़बाँ पे नाम-ए-मोहब्बत भी जुर्म था यानी
हम उन से जुर्म-ए-मोहब्बत भी बख़्शवा न सके
मैकश अकबराबादी
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