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महताब अालम शायरी | शाही शायरी

महताब अालम शेर

14 शेर

उस को आवाज़ दो मोहब्बत से
उस के सब नाम प्यारे प्यारे हैं

महताब अालम




वतन को फूँक रहे हैं बहुत से अहल-ए-वतन
चराग़ घर के हैं सरगर्म घर जलाने में

महताब अालम




ये सन कर मेरी नींदें उड़ गई हैं
कोई मेरा भी सपना देखता है

महताब अालम




ज़मीं क्यूँ मुझ से टकराती उफ़ुक़ पर
मिरा घर था मिरे ज़ाती उफ़ुक़ पर

महताब अालम




ज़ेहन ऐसे भी न बन जाएँ निसाबों वाले
गुफ़्तुगू में भी हूँ अल्फ़ाज़ किताबों वाले

महताब अालम