सुकून वस्ल में इतना नसीब हो कि न हो
जिस इज़्तिराब से मैं इंतिज़ार करता हूँ
करामत अली करामत
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टूट कर कितनों को मजरूह ये कर सकता है
संग तू ने अभी देखा नहीं शीशे का जिगर
करामत अली करामत
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वो कौन था जो मिरी ज़िंदगी के दफ़्तर से
हुरूफ़ ले गया ख़ाली किताब छोड़ गया
करामत अली करामत
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वो मेरी फ़हम का लेता है इम्तिहाँ शायद
कि हर सवाल से पहले जवाब माँगे है
करामत अली करामत
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