माँग भरूँ सिंदूर से सजूँ सोला-सिंगार
जब तक पहनूँगी नहीं उन बाहोँ का हार
जयंत परमार
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मैं हूँ और ये दूर तक धूप का रस्ता साथ
काँधे पर साया कोई रख देता है हाथ
जयंत परमार
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