तुम्हें है नश्शा जवानी का हम में ग़फ़लत-ए-इश्क़
न इख़्तियार में तुम हो न इख़्तियार में हम
जावेद लख़नवी
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उम्मीद का बुरा हो समझा कि आप आए
बे-वज्ह शब को हिल कर ज़ंजीर-ए-दर ने मारा
जावेद लख़नवी
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उन को तो सहल है वो ग़ैर के घर जाएँगे
हम जो उस दर से उठेंगे तो किधर जाएँगे
जावेद लख़नवी
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ये इक बोसे पे इतनी बहस ये ज़ेबा नहीं तुम को
नहीं है याद मुझ को ख़ैर अच्छा ले लिया होगा
जावेद लख़नवी
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