किनारे ही से तूफ़ाँ का तमाशा देखने वाले
किनारे से कभी अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ नहीं होता
जगन्नाथ आज़ाद
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मैं क्या करूँ कि ज़ब्त-ए-तमन्ना के बावजूद
बे-इख़्तियार लब पे तिरा नाम आ गया
जगन्नाथ आज़ाद
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सुकून-ए-दिल जहान-ए-बेश-ओ-कम में ढूँडने वाले
यहाँ हर चीज़ मिलती है सुकून-ए-दिल नहीं मिलता
जगन्नाथ आज़ाद
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तुम्हें कुछ इस की ख़बर भी है ऐ चमन वालो
सहर के बाद नसीम-ए-सहर पे क्या गुज़री
जगन्नाथ आज़ाद
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