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जगन्नाथ आज़ाद शायरी | शाही शायरी

जगन्नाथ आज़ाद शेर

13 शेर

किनारे ही से तूफ़ाँ का तमाशा देखने वाले
किनारे से कभी अंदाज़ा-ए-तूफ़ाँ नहीं होता

जगन्नाथ आज़ाद




मैं क्या करूँ कि ज़ब्त-ए-तमन्ना के बावजूद
बे-इख़्तियार लब पे तिरा नाम आ गया

जगन्नाथ आज़ाद




सुकून-ए-दिल जहान-ए-बेश-ओ-कम में ढूँडने वाले
यहाँ हर चीज़ मिलती है सुकून-ए-दिल नहीं मिलता

जगन्नाथ आज़ाद




तुम्हें कुछ इस की ख़बर भी है ऐ चमन वालो
सहर के बाद नसीम-ए-सहर पे क्या गुज़री

जगन्नाथ आज़ाद