EN اردو
इमाम बख़्श नासिख़ शायरी | शाही शायरी

इमाम बख़्श नासिख़ शेर

42 शेर

हो गया ज़र्द पड़ी जिस पे हसीनों की नज़र
ये अजब गुल हैं कि तासीर-ए-ख़िज़ाँ रखते हैं

इमाम बख़्श नासिख़




जिस क़दर हम से तुम हुए नज़दीक
उस क़दर दूर कर दिया हम को

इमाम बख़्श नासिख़




जिस्म ऐसा घुल गया है मुझ मरीज़-ए-इश्क़ का
देख कर कहते हैं सब तावीज़ है बाज़ू नहीं

इमाम बख़्श नासिख़




जुस्तुजू करनी हर इक अम्र में नादानी है
जो कि पेशानी पे लिक्खी है वो पेश आनी है

इमाम बख़्श नासिख़




काम औरों के जारी रहें नाकाम रहें हम
अब आप की सरकार में क्या काम हमारा

इमाम बख़्श नासिख़




करे जो हर क़दम पर एक नाला
ज़माने में दिरा है और मैं हूँ

इमाम बख़्श नासिख़