चराग़-ए-इल्म रौशन-दिल है तेरा
अंधेरा कर दिया है रौशनी ने
हीरा लाल फ़लक देहलवी
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अपना घर फिर अपना घर है अपने घर की बात क्या
ग़ैर के गुलशन से सौ दर्जा भला अपना क़फ़स
हीरा लाल फ़लक देहलवी
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ऐ शाम-ए-ग़म की गहरी ख़मोशी तुझे सलाम
कानों में एक आई है आवाज़ दूर की
हीरा लाल फ़लक देहलवी
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