एक काबा के सनम तोड़े तो क्या
नस्ल-ओ-मिल्लत के सनम-ख़ाने बहुत
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
आप शर्मिंदा जफ़ाओं पे न हों
जिन पे गुज़री थी वही भूल गए
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
आश्ना जब तक न था उस की निगाह-ए-लुत्फ़ से
वारदात-ए-क़ल्ब को हुस्न-ए-बयाँ समझा था मैं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
अब बहुत दूर नहीं मंज़िल-ए-दोस्त
काबे से चंद क़दम और सही
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
अब तो जो शय है मिरी नज़रों में है ना-पाएदार
याद आया मैं कि ग़म को जावेदाँ समझा था मैं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
अपने दामन में एक तार नहीं
और सारी बहार बाक़ी है
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
ब-सद अदा-ए-दिलबरी है इल्तिजा-ए-मय-कशी
ये होश अब किसे कि मय हराम या हलाल है
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
बताए कौन किसी को निशान-ए-मंज़िल-ज़ीस्त
अभी तो हुज्जत-ए-बाहम है रहगुज़र के लिए
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
चश्म-ए-सय्याद पे हर लहज़ा नज़र रखता है
हाए वो सैद जो कहने को तह-ए-दाम नहीं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी