चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए
ख़ुदा हाफ़िज़ कहा बोसा लिया घर से निकल आए
फ़ुज़ैल जाफ़री
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बोसे बीवी के हँसी बच्चों की आँखें माँ की
क़ैद-ख़ाने में गिरफ़्तार समझिए हम को
फ़ुज़ैल जाफ़री
भूले-बिसरे हुए ग़म फिर उभर आते हैं कई
आईना देखें तो चेहरे नज़र आते हैं कई
फ़ुज़ैल जाफ़री
अख़्लाक़ ओ शराफ़त का अंधेरा है वो घर में
जलते नहीं मासूम गुनाहों के दिए भी
फ़ुज़ैल जाफ़री
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आतिश-फ़िशाँ ज़बाँ ही नहीं थी बदन भी था
दरिया जो मुंजमिद है कभी मौजज़न भी था
फ़ुज़ैल जाफ़री
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