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फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी शायरी | शाही शायरी

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी शेर

29 शेर

कहाँ वो लोग जो थे हर तरफ़ से नस्तालीक़
पुरानी बात हुई चुस्त बंदिशें लिखना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी




आँखों के ख़्वाब दिल की जवानी भी ले गया
वो अपने साथ मेरी कहानी भी ले गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी




हर इक क़यास हक़ीक़त से दूर-तर निकला
किताब का न कोई दर्स मो'तबर निकला

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी




हम हसीन ग़ज़लों से पेट भर नहीं सकते
दौलत-ए-सुख़न ले कर बे-फ़राग़ हैं यारो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी




ग़ज़ल के पर्दे में बे-पर्दा ख़्वाहिशें लिखना
न आया हम को बरहना गुज़ारिशें लिखना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी




एक दिन ग़र्क़ न कर दे तुझे ये सैल-ए-वजूद
देख हो जाए न पानी कहीं सर से ऊँचा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी




देखना हैं खेलने वालों की चाबुक-दस्तियाँ
ताश का पत्ता सही मेरा हुनर तेरा हुनर

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी




ऐ 'फ़ज़ा' इतनी कुशादा कब थी मअ'नी की जिहत
मेरे लफ़्ज़ों से उफ़ुक़ इक दूसरा रौशन हुआ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी




अच्छा हुआ मैं वक़्त के मेहवर से कट गया
क़तरा गुहर बना जो समुंदर से कट गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी