बस एक जान बची थी छिड़क दी राहों पर
दिल-ए-ग़रीब ने इक एहतिमाम सादा किया
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
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अपनी तो कोई बात बनाए नहीं बनी
कुछ हम न कह सके तो कुछ उस ने नहीं सुनी
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
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