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बेख़ुद देहलवी शायरी | शाही शायरी

बेख़ुद देहलवी शेर

71 शेर

हो लिए जिस के हो लिए 'बेख़ुद'
यार अपना तो ये हिसाब रहा

बेख़ुद देहलवी




कुछ तरह रिंदों ने दी कुछ मोहतसिब भी दब गया
छेड़ आपस में सर-ए-बाज़ार हो कर रह गई

बेख़ुद देहलवी




कोई इस तरह से मिलने का मज़ा मिलता है
ऊपरी दिल से वो मिलता है तो क्या मिलता है

बेख़ुद देहलवी




झूटा जो कहा मैं ने तो शर्मा के वो बोले
अल्लाह बिगाड़े न बनी बात किसी की

बेख़ुद देहलवी




जवाब सोच के वो दिल में मुस्कुराते हैं
अभी ज़बान पे मेरी सवाल भी तो न था

बेख़ुद देहलवी




जादू है या तिलिस्म तुम्हारी ज़बान में
तुम झूट कह रहे थे मुझे ए'तिबार था

बेख़ुद देहलवी




इस जबीन-ए-अरक़-अफ़्शाँ पे न चुनिए अफ़्शाँ
ये सितारे कहीं मिल जाएँ न सय्यारों में

बेख़ुद देहलवी




इजाज़त माँगती है दुख़्त-ए-रज़ महफ़िल में आने की
मज़ा हो शैख़-साहिब कह उठें बे-इख़्तियार आए

बेख़ुद देहलवी




हूरों से न होगी ये मुदारात किसी की
याद आएगी जन्नत में मुलाक़ात किसी की

बेख़ुद देहलवी