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अज़्म शाकरी शायरी | शाही शायरी

अज़्म शाकरी शेर

12 शेर

यूँ बार बार मुझ को सदाएँ न दीजिए
अब वो नहीं रहा हूँ कोई दूसरा हूँ मैं

अज़्म शाकरी




ज़ख़्म जो तुम ने दिया वो इस लिए रक्खा हरा
ज़िंदगी में क्या बचेगा ज़ख़्म भर जाने के ब'अद

अज़्म शाकरी




ज़िंदगी मेरी मुझे क़ैद किए देती है
इस को डर है मैं किसी और का हो सकता हूँ

अज़्म शाकरी