दिल की आलूदगी-ए-ज़ख़्म बढ़ी जाती है
साँस लेता हूँ तो अब ख़ून की बू आती है
अज़ीज़ लखनवी
दिल नहीं जब तो ख़ाक है दुनिया
असल जो चीज़ थी वही न रही
अज़ीज़ लखनवी
दिल समझता था कि ख़ल्वत में वो तन्हा होंगे
मैं ने पर्दा जो उठाया तो क़यामत निकली
अज़ीज़ लखनवी
दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें
बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस
अज़ीज़ लखनवी
दुनिया का ख़ून दौर-ए-मोहब्बत में है सफ़ेद
आवाज़ आ रही है लब-ए-जू-ए-शीर से
अज़ीज़ लखनवी
आईना छोड़ के देखा किए सूरत मेरी
दिल-ए-मुज़्तर ने मिरे उन को सँवरने न दिया
अज़ीज़ लखनवी
हादसात-ए-दहर में वाबस्ता-ए-अर्बाब-ए-दर्द
ली जहाँ करवट किसी ने इंक़लाब आ ही गया
अज़ीज़ लखनवी
हम तो दिल ही पर समझते थे बुतों का इख़्तियार
नस्ब-ए-का'बा में भी अब तक एक पत्थर रह गया
अज़ीज़ लखनवी
हमेशा से मिज़ाज-ए-हुस्न में दिक़्क़त-पसंदी है
मिरी दुश्वारियाँ आसान होना सख़्त मुश्किल है
अज़ीज़ लखनवी