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अल्ताफ़ हुसैन हाली शायरी | शाही शायरी

अल्ताफ़ हुसैन हाली शेर

43 शेर

आ रही है चाह-ए-यूसुफ़ से सदा
दोस्त याँ थोड़े हैं और भाई बहुत

अल्ताफ़ हुसैन हाली




आगे बढ़े न क़िस्सा-ए-इश्क़-ए-बुताँ से हम
सब कुछ कहा मगर न खुले राज़-दाँ से हम

अल्ताफ़ हुसैन हाली




बहुत जी ख़ुश हुआ 'हाली' से मिल कर
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जहाँ में

अल्ताफ़ हुसैन हाली




बे-क़रारी थी सब उम्मीद-ए-मुलाक़ात के साथ
अब वो अगली सी दराज़ी शब-ए-हिज्राँ में नहीं

अल्ताफ़ हुसैन हाली




चोर है दिल में कुछ न कुछ यारो
नींद फिर रात भर न आई आज

अल्ताफ़ हुसैन हाली




दरिया को अपनी मौज की तुग़्यानियों से काम
कश्ती किसी की पार हो या दरमियाँ रहे

the river is concerned with the storms in its domain
the ship as well might get across or in the midst remain

अल्ताफ़ हुसैन हाली




धूम थी अपनी पारसाई की
की भी और किस से आश्नाई की

अल्ताफ़ हुसैन हाली




दिखाना पड़ेगा मुझे ज़ख़्म-ए-दिल
अगर तीर उस का ख़ता हो गया

अल्ताफ़ हुसैन हाली




दिल से ख़याल-ए-दोस्त भुलाया न जाएगा
सीने में दाग़ है कि मिटाया न जाएगा

अल्ताफ़ हुसैन हाली