होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए
आए तो सही बर-सर-ए-इल्ज़ाम ही आए
अदा जाफ़री
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हुआ यूँ कि फिर मुझे ज़िंदगी ने बसर किया
कोई दिन थे जब मुझे हर नज़ारा हसीं मिला
अदा जाफ़री
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जिस की बातों के फ़साने लिक्खे
उस ने तो कुछ न कहा था शायद
अदा जाफ़री
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जिस की जानिब 'अदा' नज़र न उठी
हाल उस का भी मेरे हाल सा था
अदा जाफ़री
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जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा
अदा जाफ़री
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