EN اردو
अबुल मुजाहिद ज़ाहिद शायरी | शाही शायरी

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद शेर

9 शेर

एक हो जाएँ तो बन सकते हैं ख़ुर्शीद-ए-मुबीं
वर्ना इन बिखरे हुए तारों से क्या काम बने

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद




गुलशन में न हम होंगे तो फिर सोग हमारा
गुल-पैरहन ओ ग़ुंचा-दहन करते रहेंगे

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद




जो सोते हैं नहीं कुछ ज़िक्र उन का वो तो सोते हैं
मगर जो जागते हैं उन में भी बेदार कितने हैं

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद




लोग चुन लें जिस की तहरीरें हवालों के लिए
ज़िंदगी की वो किताब-ए-मो'तबर हो जाइए

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद




मिला न घर से निकल कर भी चैन ऐ 'ज़ाहिद'
खुली फ़ज़ा में वही ज़हर था जो घर में था

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद




नई सहर के हसीन सूरज तुझे ग़रीबों से वास्ता क्या
जहाँ उजाला है सीम-ओ-ज़र का वहीं तिरी रौशनी मिलेगी

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद




तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री
तमाम उम्र तरसते रहे ख़ुशी के लिए

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद




तुम चलो इस के साथ या न चलो
पाँव रुकते नहीं ज़माने के

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद




ये नहीं कि तू ने भेजा ही नहीं पयाम कोई
मगर इक वही न आया जो पयाम चाहते हैं

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद