शहर ये सायों का है इस में बनी-आदम कहाँ
अब किसी सूरत यहाँ इंसान होना चाहिए
आबिद वदूद
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तिरे हाथों में है तिरी क़िस्मत
तिरी इज़्ज़त तिरे ही काम से है
आबिद वदूद
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यज़ीद-ए-वक़्त ने अब के लगाई है क़दग़न
कि भूल कर भी न गाए कोई तराना-ए-इश्क़
आबिद वदूद
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