वहाँ पहले ही आवाज़ें बहुत थीं
सो मैं ने चुप कराया ख़ामुशी को
अभिषेक शुक्ला
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वो एक दिन जो तुझे सोचने में गुज़रा था
तमाम उम्र उसी दिन की तर्जुमानी है
अभिषेक शुक्ला
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ये इम्तियाज़ ज़रूरी है अब इबादत में
वही दुआ जो नज़र कर रही है लब भी करें
अभिषेक शुक्ला
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ये जो दुनिया है इसे इतनी इजाज़त कब है
हम पे अपनी ही किसी बात का ग़ुस्सा उतरा
अभिषेक शुक्ला
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ये जो हम तख़्लीक़-ए-जहान-ए-नौ में लगे हैं पागल हैं
दूर से हम को देखने वाले हाथ बटा हम लोगों का
अभिषेक शुक्ला
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