साहिल पे लोग यूँही खड़े देखते रहे 
दरिया में हम जो उतरे तो दरिया उतर गया
अब्दुल्लाह जावेद
सजाते हो बदन बेकार 'जावेद' 
तमाशा रूह के अंदर लगेगा
अब्दुल्लाह जावेद
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                शाइरी पेट की ख़ातिर 'जावेद' 
बीच बाज़ार के आ बैठी है
अब्दुल्लाह जावेद
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                तर्क करनी थी हर इक रस्म-ए-जहाँ 
हाँ मगर रस्म-ए-वफ़ा रखनी ही थी
अब्दुल्लाह जावेद
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                तुम अपने अक्स में क्या देखते हो 
तुम्हारा अक्स भी तुम सा नहीं है
अब्दुल्लाह जावेद
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                यक़ीं का दाएरा देखा है किस ने 
गुमाँ के दाएरे में क्या नहीं है
अब्दुल्लाह जावेद
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                ज़मीं को और ऊँचा मत उठाओ 
ज़मीं का आसमाँ से सर लगेगा
अब्दुल्लाह जावेद
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