उल्फ़त में तेरा रोना 'एहसाँ' बहुत बजा है
हर वक़्त मेंह का होना ये रहमत-ए-ख़ुदा है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
उस लब-ए-बाम से ऐ सरसर-ए-फुर्क़त तू बता
मिस्ल तिनके के मिरा ये तन-ए-लाग़र फेंका
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
वो आग लगी पान चबाए से कसू की
अब तक नहीं बुझती है बुझाए से कसू की
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
याद तो हक़ की तुझे याद है पर याद रहे
यार दुश्वार है वो याद जो है याद का हक़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
यारा है कहाँ इतना कि उस यार को यारो
मैं ये कहूँ ऐ यार है तू यार हमारा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-नाशाद तो दो
कुछ न दो हाथ से पर मुँह से मिरी दाद तो दो
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
आँखें मिरी फूटें तिरी आँखों के बग़ैर आह
गर मैं ने कभी नर्गिस-ए-बीमार को देखा
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
आग इस दिल-लगी को लग जाए
दिल-लगी आग फिर लगाने लगी
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
आह-ए-पेचाँ अपनी ऐसी है कि जिस के पेच को
पेचवाँ नीचा भी तेरा देख कर ख़म खाए है
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी