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इश्क शायरी | शाही शायरी

इश्क

422 शेर

इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
और फिर तमाम उम्र किसी के नहीं हुए

विपुल कुमार




जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
उसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे

वली मोहम्मद वली