तिफ़्ल में बू आए क्या माँ बाप के अतवार की
दूध तो डिब्बे का है तालीम है सरकार की
अकबर इलाहाबादी
जब पढ़ा जौर ओ जफ़ा मैं ने तो आई ये सदा
ठीक से पढ़ उसे जोरू है जफ़ा से पहले
अमीरुल इस्लाम हाशमी
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मिरी मजबूरियों ने नाज़ुकी का ख़ून कर डाला
हर इक गोभी-बदन को गुल-बदन लिखना पड़ा मुझ को
अमीरुल इस्लाम हाशमी
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उठ्ठे कहाँ बैठे कहाँ कब आए गए कब
बेगम की तरह तुम भी हिसाबात करो हो
अमीरुल इस्लाम हाशमी
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प्रोफ़ेसर ही जब आते हों हफ़्ता-वार कॉलेज में
तो ऊँचा क्यूँ न हो तालीम का मेआर कॉलेज में
इनाम-उल-हक़ जावेद
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