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गांव शायरी | शाही शायरी

गांव

11 शेर

जो मेरे गाँव के खेतों में भूक उगने लगी
मिरे किसानों ने शहरों में नौकरी कर ली

आरिफ़ शफ़ीक़




गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा
एक ही रंग है दुनिया को जिधर से देखा

असअ'द बदायुनी




ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हम को
गाँव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं

बेदिल हैदरी




नज़र न आई कभी फिर वो गाँव की गोरी
अगरचे मिल गए देहात आ के शहरों से

हज़ीं लुधियानवी




मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई

कैफ़ी आज़मी




मंज़रों की भीड़ ऐसी तो कभी देखी न थी
गाँव अच्छा था मगर उस में कोई लड़की न थी

कामिल अख़्तर




इक और खेत पक्की सड़क ने निगल लिया
इक और गाँव शहर की वुसअत में खो गया

ख़ालिद सिद्दीक़ी