होश वाले तो उलझते ही रहे
रास्ते तय हुए दीवानों से
शौकत परदेसी
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हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
कि तिश्नगी थी बरहना तिरी अदाओं तक
शौकत परदेसी
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हुस्न-ए-इख़्लास ही नहीं वर्ना
आदमी आदमी तो आज भी है
शौकत परदेसी
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इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार
साबित हुआ गुनाह गुनहगार के बग़ैर
शौकत परदेसी
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जब मस्लहत-ए-वक़्त से गर्दन को झुका कर
वो बात करे है तो कोई तीर लगे है
शौकत परदेसी
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जी में आता है कि 'शौकत' किसी चिंगारी को
कर दूँ फिर शो'ला-ब-दामाँ कि कोई बात चले
शौकत परदेसी
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ख़ुद वो करते हैं जिसे अहद-ए-वफ़ा से ताबीर
सच तो ये है कि वो धोका भी मुझे याद नहीं
शौकत परदेसी
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