EN اردو
सलीम कौसर शायरी | शाही शायरी

सलीम कौसर शेर

48 शेर

आईना ख़ुद भी सँवरता था हमारी ख़ातिर
हम तिरे वास्ते तय्यार हुआ करते थे

सलीम कौसर




अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानी
इक दरिया में दूसरी बार उतरा नहीं जा सकता

सलीम कौसर




अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
ग़ज़ल में अब के भी तेरा हवाला कम रहेगा

सलीम कौसर




अहल-ए-ख़िरद को आज भी अपने यक़ीन के लिए
जिस की मिसाल ही नहीं उस की मिसाल चाहिए

सलीम कौसर




ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
सूरत-ए-हाल के लिए वाक़िफ़-ए-हाल चाहिए

सलीम कौसर




अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं
जो यहाँ आबाद हैं उन पर भी घर खुलता नहीं

सलीम कौसर




और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी
हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं

सलीम कौसर




बहुत दिनों में कहीं हिज्र-ए-माह-ओ-साल के बाद
रुका हुआ है ज़माना तिरे विसाल के बाद

सलीम कौसर




भला वो हुस्न किस की दस्तरस में आ सका है
कि सारी उम्र भी लिक्खें मक़ाला कम रहेगा

सलीम कौसर