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सबा अकबराबादी शायरी | शाही शायरी

सबा अकबराबादी शेर

35 शेर

आईना कैसा था वो शाम-ए-शकेबाई का
सामना कर न सका अपनी ही बीनाई का

सबा अकबराबादी




दोस्तों से ये कहूँ क्या कि मिरी क़द्र करो
अभी अर्ज़ां हूँ कभी पाओगे नायाब मुझे

सबा अकबराबादी




गए थे नक़्द-ए-गिराँ-माया-ए-ख़ुलूस के साथ
ख़रीद लाए हैं सस्ती अदावतें क्या क्या

सबा अकबराबादी




ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी
कभी वो न समझे कभी हम न समझे

सबा अकबराबादी




ग़म-ए-दौराँ को बड़ी चीज़ समझ रक्खा था
काम जब तक न पड़ा था ग़म-ए-जानाँ से हमें

सबा अकबराबादी




हवस-परस्त अदीबों पे हद लगे कोई
तबाह करते हैं लफ़्ज़ों की इस्मतें क्या क्या

सबा अकबराबादी




इक रोज़ छीन लेगी हमीं से ज़मीं हमें
छीनेंगे क्या ज़मीं के ख़ज़ाने ज़मीं से हम

सबा अकबराबादी




इस शान का आशुफ़्ता-ओ-हैराँ न मिलेगा
आईने से फ़ुर्सत हो तो तस्वीर-ए-'सबा' देख

सबा अकबराबादी